जहां में नाम कमाने निकला, एक नादान लोभी हूं मैं
धैर्य की दुनिया का बनूं मैं शाह, ऐसी इच्छा रखने वाला प्राथी हूँ मैं।
किसी ऐरा-गैरा का नहीं, मां का प्यारा हूं मैं।
किसी हुस्न का नहीं, किताबों की दुनिया का दिवाना हूँ मैं।
आदर, स्वाभिमान पर मर-मिटने वाला पागल हूं मैं
हर किसी से ज्ञान प्राप्ती की, अभिलाषा रखने वाला भिखारी हूँ मैं।
तुम ये न समझना कि मुस्लिम हूँ तो आतंकवादी हूं मैं
अहिंसा का मान रखने वाला गांधीवादी हूं मैं।
अपने मुल्क पे जां देने वाला एक सच्चा हिन्दुस्तानी हूं मैं।
किसी के उपकार का नहीं, खुद का मोहताज हूँ मैं।
किसी का प्यार-व्यार नहीं, भाई का अभिमान हूँ मैं।
हर किसी के सामने अच्छा नहीं बनना मुझे
बस बाउ ज़ी का बनूं शान वो औलाद हूँ मैं।
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