मिर्ज़ा ग़ालिब उर्दू के अज़ीम शायरों में से एक हैं और शायद ही ऐसा कोई होगा जो ग़ालिब के नाम से नावाक़िफ़ होगा। हालांकि मिर्ज़ा ग़ालिब ने अपनी शायरी में फ़ारसी का बहुत प्रयोग किया इसलिए वह आम-जम की समझ से दूर रहे लेकिन तब भी दिल के क़रीब रहे।चुनांचे पेश हैं मिर्ज़ा ग़ालिब के कुछ मशहूर सरल शेरहर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या हैतुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या हैचिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहनहमारे जैब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या हैजला है जिस्म जहां दिल भी जल गया होगाकुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या हैरगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइलजब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या हैवो चीज़ जिस के लिए हम को हो बहिश्त अज़ीज़सिवाए बादा-ए-गुलफ़ाम-ए-मुश्क-बू क्या हैपियूं शराब अगर ख़ुम भी देख लूं दो-चारये शीशा ओ क़दह ओ कूज़ा ओ सुबू क्या हैरही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भीतो किस उमीद पे कहिए कि आरज़ू क्या हैहुआ है शह का मुसाहिब फिरे है इतरातावगर्ना शहर में 'ग़ालिब' की आबरू क्या है--मिर्जा गालिब
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